पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का निर्णय सर्वमान्य होना चाहिये ः महाराज सुधन्वा
कार्यालय डेस्क
सिवनी 03 अप्रैल (संवाद कुंज). ज्योतिष पीठ एवं द्वारका शारदा पीठ के शंकरचार्य पद पर अभिषिक्त स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के देह त्यागने के बाद उनकी पीठ का दायित्व शेष दो पीठों के अभिषिक्त शंकराचार्य संभाल सकते हैं तथा वर्तमान परिस्थिति में जो विवाद बना हुआ है उसमें आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित दूसरी पीठ पुरी के शंकराचार्य जी का निर्णय सर्वमान्य होना चाहिये.
आदि शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रंथ मठाम्नाय में लिखा है कि यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है तो आचार्यों को परस्पर मिल जुलकर व्यवस्था कर लेनी चाहिये. इसके बाद प्रश्न यह उठता है कि चारों पीठों के आचार्यों के बीच मध्यस्तता अथवा अध्यक्षता कौन करेगा? मठाम्नाय महानुशासन में इसका कोई समाधान नहीं है क्योंकि मठाम्नाय महानुशासन कहता है कि पद पर योग्य व्यक्ति ही आरूढ़ हो, अभिषिक्त हो. ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो, जिसको संसार के हर विषय का ज्ञान हो अगर वह पद पर आरूढ़ होता हैं तो विवाद उत्पन्न होने पर परस्पर मिलकर हल निकाला जा सकता है. पर अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाये कि चारों पीठ के शंकराचार्य एक मत न हो पायें जैसी की स्थिति अभी है तो प्रश्न यह उठता है कि चारों में अध्यक्षता कौन करेंगा?
ऐसी स्थिति आने पर महाराज सुधन्वा के ताम्रपत्र में उल्लेख मिलता है कि द्वारका शारदा मठ की स्थापना सर्वप्रथम हुई है अतः उसी का निर्णय सर्वमान्य होगा.अब वर्तमान में मु‘य विषय यह है कि द्वारका शारदा एवं ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज स्वयं ही ब्रम्हलीन हो गये हैं. तो द्वारका शारदा पीठ के बाद दूसरी जिस पीठ की स्थापना हुई है वह गोवर्धन पीठ है. गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज हैं. महाराज सुधन्वा के ताम्रपत्र के अनुसार उनका निर्णय सर्वमान्य होना चाहिये.