भगवान महावीर के सिद्धांत को ही महात्मा गांधी ने अपनाया : गौरव

भगवान महावीर ने आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व अहिंसा का सिद्धांत दिया और इसी सिद्धांत को महात्मा गांधी ने अपनाया ताकि भारत में अमन और शांति कायम रहे. यह बात अहिंसा सम्मेलन में आम आदमी पार्टी से जुड़े गौरव जैसवाल द्वारा कही गयी है. श्री जैसवाल ने कहा कि भारत में आज भी सत्ता…

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जीवन में सुख शांति हेतु जैन धर्म के सिद्धांतों पर अमल करने के अतिरिक्त हमारे पास कोई विकल्प ही नहीं है : नीता पटेरिया

आज जिस प्रकार से हमें टीवी न्यूज में अखबारों में सर्वत्र हो रही अशांति हिंसा की अप्रिय घटनाएं पढ़ने एवं सुनने को मिल रही हैं उसके बाद यह लगता है कि अगर सभी लोग मन से भगवान महावीर के अहिंसा के सिद्धांत को आत्मसात कर लें तो यह सबकुछ अपने आप रूक जायेगा. उक्ताशय की…

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मात्र शारीरिक प्रताड़ना ही नहीं  मानसिक प्रताड़ना भी हिंसा है : राकेश पाल

आज शुक्रवारी में आयोजित अहिंसा सम्मेलन में उपस्थित श्रोताओं की भाव भंगिमा को देखकर भाषण कला मे माहिर पूर्व केवलारी विधायक श्री राकेश पाल सिंह ने हँसकर कहा कि मात्र शारीरिक हिंसा ही हिंसा नहीं है. भगवान महावीर ने मानसिक प्रताड़ना को भी हिसा कहा है और मै आप सबकी मनोभावनाओं को देखकर समझ रहा…

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गीता में जिन विकृतियों से बचने की बात कही गयी है वह जैन मुनियों की चर्या में आदर्श मान होती है : गीता दीदी

गीता में हम जिस काम, क्रोध, मद, मोह, माया, लोभ आदि विकृतियों से बचने का उपदेश देते हैं वास्तव में वो अगर कहीं दिखता है तो जैन मुनियों की चर्या में एक आदर्श के रूप में ही दिखता है. जो दिगंबर अवस्था में ग्रीष्म, शीत एवं वर्षा ऋतु तीनों काल के तीव्र प्रभाव को अपने…

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जिस कुल में जैन तीर्थंकरों ने जन्म लिया था उसी क्षत्रिय कुल में मुझे जन्म लेने का सौभाग्य मिला : रजनीश सिंह

कार्यालय डेस्क सिवनी 21 अप्रैल (संवाद कुंज). मुझे इस बात का सदैव गर्व रहता है कि मैं क्षत्रिय परिवार में जन्मा हूँ और जैन धर्म के तीर्थंकर भगवंत भी क्षत्रिय वंश से रहे हैं और जो त्याग तपस्या जैन धर्म के तीर्थंकरों ने की है वो क्षत्रीय के पराक्रम और शूरवीरता को दर्शाते हैं. यह…

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पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का निर्णय सर्वमान्य होना चाहिये ः महाराज सुधन्वा

पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज का निर्णय सर्वमान्य होना चाहिये ः महाराज सुधन्वा कार्यालय डेस्क सिवनी 03 अप्रैल (संवाद कुंज). ज्योतिष पीठ एवं द्वारका शारदा पीठ के शंकरचार्य पद पर अभिषिक्त स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के देह त्यागने के बाद उनकी पीठ का दायित्व शेष दो पीठों के अभिषिक्त शंकराचार्य संभाल सकते हैं तथा वर्तमान परिस्थिति में जो विवाद बना हुआ है उसमें आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित दूसरी पीठ पुरी के शंकराचार्य जी का निर्णय सर्वमान्य होना चाहिये. आदि शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रंथ मठाम्नाय में लिखा है कि यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है तो आचार्यों को परस्पर मिल जुलकर व्यवस्था कर लेनी चाहिये. इसके बाद प्रश्न यह उठता है कि चारों पीठों के आचार्यों के बीच मध्यस्तता अथवा अध्यक्षता कौन करेगा? मठाम्नाय महानुशासन में इसका कोई समाधान नहीं है क्योंकि मठाम्नाय महानुशासन कहता है कि पद पर योग्य व्यक्ति ही आरूढ़ हो, अभिषिक्त हो. ऐसा व्यक्ति जिसने अपनी इंद्रियों को जीत लिया हो, जिसको संसार के हर विषय का ज्ञान हो अगर वह पद पर आरूढ़ होता हैं तो विवाद उत्पन्न होने पर परस्पर मिलकर हल निकाला जा सकता है. पर अगर ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाये कि  चारों पीठ के शंकराचार्य एक मत न हो पायें जैसी की स्थिति अभी है तो प्रश्न यह उठता है कि चारों में अध्यक्षता कौन करेंगा? ऐसी स्थिति आने पर महाराज सुधन्वा के ताम्रपत्र में उल्लेख मिलता है कि द्वारका शारदा मठ की स्थापना सर्वप्रथम हुई है अतः उसी का निर्णय सर्वमान्य होगा.अब वर्तमान में मु‘य विषय यह है कि द्वारका शारदा एवं ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज स्वयं ही ब्रम्हलीन हो गये हैं. तो द्वारका शारदा पीठ के बाद दूसरी जिस पीठ की स्थापना हुई है वह गोवर्धन पीठ है. गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज हैं. महाराज सुधन्वा के ताम्रपत्र के अनुसार उनका निर्णय सर्वमान्य होना चाहिये.

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