एमपी के मन में मोदी है, शिवराज ने रचा इतिहास

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केवलारी में रजनीश और मुनमुन को आ गया आनंद

कार्यालय डेस्क

सिवनी 3 दिसं. (संवाद कुंज) विधानसभा चुनाव के परिणामों को देखकर कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान मध्यप्रदेश का डीएनए समझ गये हैं. 3 माह पूर्व पूरे प्रदेश में हर कोई कह रहा था कि इस बार सत्ता फिसलती सी महसूस हो रही है इसके बाद योजनाओं के प्रदेश मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान लाड़ली बहना योजना की घोषणा करते हैं और 3 माह में तीव्र गति से इस योजना पर काम होता है और परिणाम सबके सामने हैं प्रदेश में 163 सीटों पर भाजपा विजय हो गयी है. कांग्रेस 66 सीटों पर सिमट गयी. 1 सीट अन्य दल को आ गयी. भाजपा ने यह एक योजना से 3 माह में चुनाव पलट दिया है. लाड़ली बहना योजना गेम चेंजर साबित हुई है.

ज्ञात हो कि अब तक के चुनाव में भाजपा मतदाताओं को धर्म आधारित बाँटती थी. वो वोट बैंक भाजपा का बना हुआ है साथ में इस बार भाजपा ने महिला और किसानो का एक नया वोट बैंक तैयार कर लिया है. अब महिलाएं चाहे वो किसी भी जाति धर्म की हों लाड़ली बहना योजना के कारण भाजपा से जुड़ गयी हैं और किसान धान और गेहूँ के समर्थन मूल्य के कारण भाजपा से जुड़ गया है. चुनाव में जीत हासिल करने के लिये दो बड़े मतदाता समूहों का योग चाहिये होता है और चूँकि भाजपा सत्ता मे है सभी लोगों के बैंक खाते, आधार, पेन कार्ड लिंक हैं तो भाजपा कोई भी दो वर्ग के मतदाताओं का योग कर एक योजना बना जादूगरी दिखा दी है.

मध्यप्रदेश को योजनाओं का प्रदेश कहा जाता है. भारतीय जनता पार्टी ने एक ट्रेंड और सेट किया है कि जिन विकास कार्यों में ज्यादा पैसा लगता है जैसे सड़क, बिजली, पानी उन सबके लिये जनता से अलग से टेक्स ले लिया जाये जैसे सड़क के लिये टोल टेक्स, रेल्वे के लिये किराये भाड़े में वृद्धि, बिजली के लिये दामों में वृद्धि, प्रापर्टी टेक्स, हाउस टेक्स आदि में वृद्धि कर भाजपा लोगों को सुविधा प्रदान कर देती है और चुनाव जीतने के लिये जनता को सीधे लाभ प्रदान करने वाली योजना को क्रियान्वित कर वोट भी हासिल कर लिये जायें तो विकास भी हो जाता है और सरकार भी बने रह जाती है. टेक्स देने वाला मध्यमवर्गीय इससे नाराज जरूर रहता है पर उस वर्ग के हाथ में कुछ रह नहीं जाता है. आज इन्हीं योजनाओं के कारण बहुत बड़ी संख्या में प्रदेश की जनता भाजपा के साथ है. 6 माह बाद लोकसभा चुनाव है तो निश्चित रूप से लाड़ली बहनों से किसानों पर भाजपा पैसा बरसायेगी.

चौकाने वाले परिणाम आये केवलारी मे

सिवनी जिले में सबसे ज्यादा चौकाने वाले परिणाम केवलारी विधानसभा सीट से आये हैं. केवलारी विधानसभा सीट में ठाकुर रजनीश सिंह 33760 हजार वोटों से विजयी रहे हैं. केवलारी में लाड़ली बहना की संख्या बहुत ज्यादा है. विकास कार्य भी बहुत हुए हैं पर मतदाताओं ने न लाड़ली बहना पर वोट दिया, पेंच की नहरों के सीमेंटीकरण पर, न सीएम राइज स्कूल पर, न विद्युत सब स्टेशन पर केवलारी की जनता ने ठाकुर रजनीश सिंह के व्यवहार को देखकर एकतरफा उन्हें जिताया. केवलारी में श्री राकेश पाल सिंह की हार को देखकर ऐसा लगता है कि केवलारी में संगठन रजनीश सिंह के साथ मिला हुआ था अन्यथा भाजपा की इतनी बड़ी हार तो केवलारी में कभी नहीं हुई. सिवनी में शुरू में लोग काम नहीं कर रहे थे पर बाद में संगठन सक्रिय भी हो गया था जिसका फायदा श्री दिनेश राय मुनमुन को मिला हालाकि संगठन और श्री राय के बीच अब एक पर्याप्त फासला बन चुका है जो शायद की कभी पटेगा पर संगठन ने फिर भी श्री राय का काम किया है.

सिवनी में स्थिति पूर्ववत रही

सिवनी विधानसभा की अगर बात की जाये तो यहाँ मामूली फेरबदल हुआ है. पिछले बार श्री दिनेश राय मुनमुन 22 हजार वोटों से जीते थे इस बार 18 हजार 418 वोटों से जीते हैं. सिवनी विधानसभा के पोलिंग बूथ छपारा के पहाड़ी गाँव से शुरू होते हैं जो कि कांग्रेस का क्षेत्र है और शहर से लेकर गोपालगंज तक भाजपा का क्षेत्र है. जिन पोलिंग बूथों से कांग्रेस जीतती थी वहाँ से कांग्रेस ही जीती जहाँ से भाजपा जीतती थी वहाँ से भाजपा ही जीती है. कोई बड़ा फेरबदल न होना यह दिखाता है कि जनता श्री राय से संतुष्ट है श्री राय ने अगर किसी का काम नहीं किया तो किसी से दुश्मनी भी नहीं भुनायी. वे तटस्थ होकर राजनीति करते रहे.

सिवनी विधानसभा में नौवे राउंड में श्री दिनेश राय मुनमुन 1528 वोटों से आगे थे याने की यहाँ तक कांटे की टक्कर थी. 10वा, 11वा, 12वा और 13वा राउंड शहर का था. इन चारों राउंड में श्री दिनेश राय मुनमुन 11 हजार वोट से आगे हो गये. 14वे,15वे और 16वे राउंड में वे लगभग 7 हजार की लीड ले 18 हजार 418 वोटों से जीत गये. सिवनी विधानसभा में भाजपा का मुख्य क्षेत्र है मतदान केन्द्र क्रमांक 191 से लेकर 331 तक ही है.

उक्त पोलिंग बूथ में बीच बीच में कुछ कांग्रेस के क्षेत्र हैं पर भाजपा की लीड इतनी ज्यादा रहती है कि कांग्रेस के क्षेत्र मायने नहीं रखते. तो एक प्रकार से देखा जाये तो 2018 जैसी स्थिति रही जैसा चुनाव श्री मोहन चंदेल का था मोटे मोटे तौर पर वैसा ही रहा. कांग्रेस ने 2018 में जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखकर टिकिट दी थी तो भी चुनाव परिणाम नहीं बदले, इस बार नये युवा चेहरे को टिकिट देकर देख ली तो भी परिणाम वैसे ही रहे. 2018 में लाड़ली बहना योजना नहीं थी तब भी चुनाव परिणाम वैसे ही थे और लाड़ली बहना योजना आ जाने के बाद भी चुनाव परिणाम में फेरबदल नहीं आया. याने की सिवनी विधानसभा की जनता का माइंड सेट है. जहाँ के लोग जहाँ वोट डालते हैं उनके वोट वहीं जाते हैं और संगठन का काम भी जैसा हर चुनाव में रहता है वैसा ही रहा.

सिवनी के बाद सबसे ज्यादा रोचक मुकाबला अगर कहीं रहा तो बरघाट विधानसभा में रहा. बरघाट विधानसभा में कांटे की टक्कर थी. अर्जुन काकोड़िया की सक्रियता से लगता था कि वे चुनाव जीतेंगे पर कमल मर्सकोले 17 हजार 585 वोटों से चुनाव जीत गये. दरअसल आदिवासी समाज के लोगों को कमल मर्सकोले में अपनापन नजर आता है जैसे वो उनके अपने बीच का उनके जैसा है जबकि अर्जुन सिंह काकोडिया भिन्न लगते हैं. भाजपा प्रत्याशी श्री कमल मर्सकोले ने 1 लाख 11 हजार 614 मत लिये हैं वहीं अर्जुन काकोड़िया ने 94 हजार 029 मत लिये हैं.

अगर लखनादौन की बात की जाये तो वहाँ का चुनाव शुरू होने के पहले ही सेट था. श्री योगेन्द्र बाबा का चुनाव जीतना तय माना जा रहा था विजय उईके की हार भी तय थी. योगेन्द्र बाबा को 1 लाख 14 हजार 519 मत मिले हैं वहीं विजय उईके को 95 हजार 898 मत मिले हैं. 18 हजार 621 वोटों से कांग्रेस विजयी हुई है. उल्लेखनीय होगा कि श्री योगेन्द्र बाबा बहुत सादगी से रहने वाले विधायक है.

अगर देखा जाये तो केवलारी, बरघाट और लखनादौन में प्रत्याशियों का व्यवहारिकता एक विषय रहा. रजनीश सिंह, कमल मर्सकोले, योगेन्द्र बाबा तीनों ही जीते हुए विधायक बहुत ही विनम्र स्वभाव के विधायक है लोग जब इनसे मिलते हैं बातचीत करते हैं तो ऐसा नहीं लगता कि वे किसी विधायक से या बड़े पद के व्यक्ति से बात कर रहे हैं.

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