गीता में जिन विकृतियों से बचने की बात कही गयी है वह जैन मुनियों की चर्या में आदर्श मान होती है : गीता दीदी

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गीता में हम जिस काम, क्रोध, मद, मोह, माया, लोभ आदि विकृतियों से बचने का उपदेश देते हैं वास्तव में वो अगर कहीं दिखता है तो जैन मुनियों की चर्या में एक आदर्श के रूप में ही दिखता है. जो दिगंबर अवस्था में ग्रीष्म, शीत एवं वर्षा ऋतु तीनों काल के तीव्र प्रभाव को अपने दिगंबर तन पर बड़ी ही साम्यता से सहन करते हैं. किसी भी प्रकार की प्रतिकूलता से प्रभावित नहीं होते अपने संयम मार्ग पर अनवरत साधनारत रहते हैं.

उक्ताशय की बात आज अहिंसा सम्मेलन में मुय वक्ता के रूप में ब्रम्हकुमारी आश्रम से पधारी आदरणीय गीता दीदी द्वारा कही गयी है. आपने कहा कि भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित अहिंसा के सूत्र मात्र जैन संस्कृति के कल्याण के लिये ही नहीं अपितु उनसे सारा जन जन अपना आत्मकल्याण कर सकता है आज भी जैन साधु साध्वियाँ इस प्रतिकूल दौर में वही चर्या एवं साधना का परिपालन करते हैं जो भगवान ऋषभदेव से लेकर भगवान महावीर तक की श्रमण परंपरा ने पालन की है.

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