रामभद्राचार्य द्वारा स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज पर की गयी टिप्पणी निंदनीय : अग्निपीठाधीश्वर

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कार्यालय डेस्क

सिवनी 10 सितं (संवाद कुंज) स्वामी रामभद्राचार्य के द्वारा सिवनी के पॉलिटेक्निक ग्राउंड में आयोजित रामकथा में विगत दिनों ब्रम्हलीन जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज को व्यवहार से कांग्रेसी कहा गया जो कि उचित नहीं है. स्वामी रामभद्राचार्य के इस वक्तव्य की निंदा अग्निपीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर श्रीमद् रामकृष्णानंद महाराज अमरकंटक द्वारा की गई है.

अग्निपीठाधीश्वर ने कहा कि स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे. उन्होंने भारत को स्वतंत्र कराने के लिए आजादी की लड़ाई में भाग लेकर कठोर कारावास की सजा भोगी जिसके अंतर्गत वह उत्तरप्रदेश के बनारस के इचवल जेल में 6 माह का कारावास तथा मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले की जेल में 5 माह का कारावास भोगा है. उस समय सत्ता ब्रिटेन के हाथों में थी और देश की अपनी पार्टी कांग्रेस पार्टी थी जिसमे सभी प्रांतों के लोग जुड़े थे और देश की लड़ाई में अपने अपने ढंग से योगदान दे रहे थे.
आचार्य महामण्डलेश्वर ने कहा कि रामराज्य परिषद का गठन धर्मसम्राट करपात्री जी महाराज ने किया था जिसके संस्थापक आप ही थे रामराज्य परिषद कांग्रेस के विरोध में गठित की गई थी. गौरक्षा आंदोलन जब दिल्ली में आयोजित किया गया था जिसमें करपात्री जी महाराज तथा ब्रम्हलीन जगद्गुरू शंकराचार्य महाराज और गोवर्धन पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य निरंजन देव तीर्थ भी उपस्थित थे. इस आंदोलन के समय भी कांग्रेस की सरकार थी तथा भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थी. सन् 1986 में राम मंदिर का ताला तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ब्रम्हलीन जगदगुरू शंकराचार्य जी के कहने पर खोला था. आपने कहा कि जब देश के अंदर हर-हर मोदी का नारा लगा रहे थे तब ब्रम्हलीन जगदगुरू शंकराचार्य जी के द्वारा हर-हर मोदी का उन्होंने विरोध किया क्योंकि हर-हर शब्द भगवान शिव के लिए उपयोग किया जाता है ऐसा कहकर उन्होंने धर्म का मार्ग दिखाया इससे वे कांग्रेसी नहीं हो गये?

आचार्य महामण्डलेश्वर ने कहा कि रामकथा के माध्यम से आप स्वयं एक दल विशेष तथा व्यक्ति विशेष का प्रचार कर रहे हैं जो उचित नहीं है. आपके द्वारा जिस व्यक्ति का प्रचार प्रसार किया जा रहा है वह शंकराचार्य की जन्मभूमि गुरूधाम के ट्रस्ट का ट्रस्टी भी है. शंकराचार्य जी के आश्रम में उनकी धर्मसभाओं में उन्हें पर्याप्त सम्मान दिया गया. सिवनी में आयोजित रामकथा के जो वीडियो आ रहे हैं उससे आपकी विद्वता पर तरस आता है. एक विद्वान सन्यासी को इस तरह के माहौल में संतुलित वक्तव्य देना चाहिये.

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